अंखियों के गोली से घायल होता एक मज़हब
बीते दिनों महाशिवरात्रि और भेलेनटाईन डे के धुम-धाम के बीच एक फुल वाले की दुकान पर अचानक मेरी मुलाकात एक खुबसूरत हसीन सी लड़की से हो गई। मैं मंदिर के सजावट के लिए फुल ले रहा था, तभी सुर्ख लाल गुलाब की कलियों से खेलती उस लड़की पर मेरी नजर पड़ गई, अभी तिरछी नजर से उसे देखा ही था कि, उसने अपनी दोनों भौं को बारी-बारी से उपर नीचे करते हुए मुझे छेड़ने की कोशिश करने लगी । अब मैं ठहरा एक अदना सा पकौड़े वाला, अगर इन अंखियों के भंवर जाल में उलझनें की कोशिश करता तो अब तक पकौड़े तलते-तलते ना जाने कितनों अंखियों के समंदर में गोते लगा चुका होता और खुद पकौड़ा बन गया होता। उसकी इस हिमाकत भरी कारस्तानियों को भांप कर, जैसे-तैसे फुल लेकर वहाँ से भागा और भागा-भागा अपने दोस्तों को ये वाक्या सुना डाला। मेरे चार दोस्तों में एक दोस्त साहिल विशेष समुदाय से आता था, आधुनिक परिवेश में पले-बढ़े परंतु कट्टरपंथी विचारों से डरा हुआ, मेरे उस दोस्त ने बड़े सख्त लहजे में अपनी मर्दानगी का परिचय देते हुए हमलोगों को उससे निपटने का हुनर सिखा ही रहा था, कि इतने में वो लड़की फिर हमलोगों के नजर के सामने थी, लेकिन ये वही लड़