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Showing posts from August, 2017

रोहिन्ग्या मुसलमान "शरणार्थी" या "रिफ्यूजी जिहाद" की साजिश ?

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हम भारतीय मानसिक रूप से इतने उदारवादी और भावुक होते हैं, की जब भी कोई अतिथि हो या असहाय हमारे यहाँ आते हैं, उसे हम अपना सिरमौर बना लेते हैं, क्योंकि हमारी संस्कृति, हमारे संस्कार, हमारी सभ्यताएं ये हमें हमारे पूर्वजों से विरासत में मिली है। “अतिथि देवो भव:” हमारा मूल मंत्र भी है और धर्म भी है। हमारा देश पहले की तरह आज भी विविधताओं से भरा देश है जहां हर धर्म, हर मजहब के लोग रहते हैं। इसी खूबियों के कारण हमारे देश पर अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों ने अपना प्रभुत्त्व स्थापित करने की कोशिश की, तथा कुछ ने लम्बे अर्से तक शासन भी किया। हमारे देश पर सबसे पहले आक्रमण करने वाले आक्रांता (बैक्ट्रिया के ग्रीक राजा, इन्हें भारतीय साहित्य में यवन के नाम से जाना जाता है।) से लेकर मुगलों ने, सिकंदर से लेकर वास्कोडिगामा तक सब अपने अपने तरीके और सहुलियत के हिसाब से हमारे देश में आएँ और धीरे-धीरे यहाँ की धरोहरों पर अपनी काली नज़र गाड़ लूटने की साजिश रचे और लूटते रहें। आज फिर हमारे देश में बहुत ही सुनियोजित तरीके से रोहिन्ग्या मुसलमानों को शरणार्थी बना हमारे देश भेजे जाने की एक साजिश रची जा रही है, जिसे ह

प्राकृतिक आपदाओं के समाधान के प्रति कितने गम्भीर हम ?

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कहते हैं, "एक समाज जितनी तेज गति से परिवर्तनशील होता है समस्याएँ उससे अधिक तेज गति से प्रगतिशील होती है" हमारे समाज में समस्याओं और समाधानों का ताना-बाना इतना जटिल और विकराल है कि हम एक तरफ तो समस्या का निवारण करते हैं, लेकीन वहीं दूसरी तरफ समस्याएं अपना प्रकृति बदल कर हमारे सामने प्रकट हो जाती है। बीते दशकों में हमारा देश जनसँख्या वृद्घि, बेरोजगारी, आतंकवाद, नक्सलवाद, घुसपैठ, असमानता, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, भ्रूण हत्या, गम्भीर बिमारीया, जातिवाद जैसी अनेकों समस्याओं से जूझ रहा था, परंतु 2014 मे हुए सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ताधारी दल इन समस्याओं से बहुत ही आक्रमक रूप से निपटता हुआ प्रतीत हो रहा है। परंतु इन सारे समस्याओं के समाधानों के बिच उलझे हुए रहने के कारण हम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कोई ठोस कदम उठाने पर विचार और इसके स्थाई समाधान पर चिन्तन नहीं कर पाते हैं। हमारे समाज के लिए, सरकर के लिए और इस पृथ्वी के लिए यह महज एक सवाल ही नही, एक भयावह भविष्य है जिसे हमें समय पूर्व गम्भीर चिन्तन कर जल्द से जल्द अमल में लाने की जरुरत है वर्तमान समय में हमारा देश बाढ़ के व

साजिशों के गिरफ्त में युवा पीढ़ी

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अजीब विडम्बना है हमारे आज के युवा पीढ़ी की, इतने पढ़े लिखे और समझदार होने के बावजूद भी अपने विचारों और भावनाओं को सूली पर चढ़ा वाह्य शक्तियों और परिवारवादी राजनैतिक दलों के चक्रव्यूह में फंस कर अपने ही देश में अपने ही देश से आजादी और टुकड़े करने का नारा लगाने लगते हैं और उनके साथ खड़े हो जाते है। --ये जानते हुए कि वो बलात्कारियों को दस हजार रुपये और सिलाई मशीन बांट रहा है। --ये जानते हुए कि वो अपने और अपने परिवार को सत्ता में स्थापित करने के लिए तमाम राजनैतिक प्रपंच रच रहे हैं। --ये जानते हुए कि वो नक्सली विचारधारा प्रेरित हो पुरे देश में लाल झंडा फहराना चाहते हैं। फिर भी हम उनके झंडे थाम लेते हैं। आखिर क्यों?? यह एक सवाल है जिसे हमें समझना होगा। कुछ वर्षों पहले हमारे बिहार के नेताजी ने कहा था कि, 'हमरे जीते जी कोई माई का लाल आरक्षण खत्म नहीं कर सकता' और ये वही नेताजी हैं, जिन्होंने वर्षों पहले (वर्ष याद नहीं है लेकिन बिहार विभाजन से पहले की बात है) हमारे गृह जिला दरभंगा एक रैली को संबोधित करने पँहुचे थे, उस रैली में हमरे नेताजी ने कहा था कि, "बिहार का बँटवारा हमरी