प्राकृतिक आपदाओं के समाधान के प्रति कितने गम्भीर हम ?
कहते हैं, "एक समाज जितनी तेज गति से परिवर्तनशील होता है
समस्याएँ उससे अधिक तेज गति से प्रगतिशील होती है"
हमारे समाज में समस्याओं और समाधानों का ताना-बाना इतना जटिल और विकराल है कि हम एक तरफ तो समस्या का निवारण करते हैं, लेकीन वहीं दूसरी तरफ समस्याएं अपना प्रकृति बदल कर हमारे सामने प्रकट हो जाती है।
बीते दशकों में हमारा देश जनसँख्या वृद्घि, बेरोजगारी, आतंकवाद, नक्सलवाद, घुसपैठ, असमानता, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, भ्रूण हत्या, गम्भीर बिमारीया, जातिवाद जैसी अनेकों समस्याओं से जूझ रहा था,
परंतु 2014 मे हुए सत्ता परिवर्तन के बाद सत्ताधारी दल इन
समस्याओं से बहुत ही आक्रमक रूप से निपटता हुआ प्रतीत हो रहा है।
परंतु इन सारे समस्याओं के समाधानों के बिच उलझे हुए रहने के कारण हम प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए कोई ठोस कदम उठाने पर विचार और इसके स्थाई समाधान पर चिन्तन नहीं कर पाते हैं। हमारे समाज के लिए, सरकर के लिए और इस पृथ्वी के लिए यह महज एक सवाल ही नही, एक भयावह भविष्य है जिसे हमें समय पूर्व गम्भीर चिन्तन कर जल्द से जल्द अमल में लाने की जरुरत है
वर्तमान समय में हमारा देश बाढ़ के विध्वंसकारी दंश को झेल रहा है, देश की तीन चौथाई भाग इस समय भीषण बाढ़ के चपेट में हैं, लोगों में त्राहिमाम मचा हुआ है।
अन्य पिछ्ली सरकारों के अपेक्षा वर्तमान सरकार इस भीषण त्रासदी से निपटने के लिये अत्यंत गम्भीर और प्रयत्नशील दिख रही है। हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं। प्रशाशन भी चाक-चौबंद है।
परंतु इन सब से परे पिछ्ली सरकारों की तरह वर्तमान सत्ताधारी दल भी इस प्रलयंकारी बाढ़ की विभिषिका से बचने को लेकर कोई ठोस और स्थाई समाधान को लेकर गम्भीर नहीं दिख रही।
वर्षों पहले कुछ पर्यावरणविदों और भौगोलिक सरंचनाओं के जानकारों ने बाढ़ और सुखाड़ के प्रलयंकारी विभिषिका से बचने के लिए कई समाधान बताये थे, जिसमे कुछ जानकारों ने
नदियों को जोड़ने के अलावा भी इस समस्या के स्थाई समाधन को लेकर दो उपाय और बताये थे।
1: तटबंधों की ऊंचाई बढाना, जैसा चीन ने किया है, लेकिन इसमें तटबन्ध एक सुलगते हुए बारूद की तरह होता है, जो कभी भी फट सकती है। बाँध के टूटने पर जो तबाही की विकरालता होती है उसका एक भयावह उदाहरण आप बिहार के कोशी त्रासदी से ले सकते हैं।
2: Dredging विधि से नदियों के तली को और गहरा करना,
गाद निकालना इत्यादि द्वारा लेकिन इसमें भी पर्यावरण को नुकसान खतरा होता है, हर वर्ष बाढ़ आएगी और अपने साथ गाद लायेगी, लेकिन यदि विधि से किया जाय तो इस नुकसान को कम और temporary किया जा सकता है
3: नदियों को नदियों से आपस मे जोड़कर।
नदियों को नदियों से जोड़ने का प्रस्ताव सर्वप्रथम 150 वर्ष पूर्व सन् 1919 में मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्य इन्जीनियर सर ऑर्थर कॉटोन ने दिया था, कैप्टन दस्तूर ने इसकी रूपरेखा तैयार की थी।
नदियों से नदियों को जोड़ने को लेकर यह योजना पहले भी तीन अलग-अलग कालखण्डों में प्रस्तावित हो चुका है।
--जानकारों के अनुसार पहला प्रस्ताव सन् 1857 में आया था।
--दुसरा प्रस्ताव कावेरी जल विवाद अभिकरण के 18 साल बाद सन् 1972 में सामने आया था।
--तीसरा प्रस्ताव सन् 2005 में कॉंग्रेसनीत UPA के कार्यकाल में सामने आया था
इस बहुप्रतिक्षित महत्वकांक्षी परियोजना को लेकर कई बार अवाज उठाए जाने के बाद भी हर बार किसी न किसी वजह से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, वजह जो भी रहा हो।
पिछ्ली सरकारों मे वर्तमान सत्ताधारी दल (भाजपानीत NDA) के ही प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी इस प्रलयंकारी बाढ़ से बचाने को लेकर गम्भीर दिखे और नदियों को नदियों से जोड़ने वाली इस बहुप्रतिक्षित महत्वकांक्षी परियोजना को शुरु करने की कवायद तेज की, परन्तु राजनैतिक हस्तक्षेप की वजह से उस समय भी यह परियोजना ठन्डे बस्ते में चला गया।
कहा जाता है कि यह परियोजना सिर्फ बाढ़ के लिए ही नहीं अपितु सुखाड़ की समस्या से निपटने के लिये एक ठोस, कारगर और स्थाई समाधान हो सकता था, अगर बिना किसी राजनैतिक लालसा और श्रेय लेने के होड़ से इतर सभी राजनैतिक दल मिल कर इस समस्या के समाधन पर पुनर्विचार करते हैं तो।
कुछ पर्यावरणविदों के अनुसार अगर आप पर्यावरण से कोई खिलवाड़ करते है तो इसके कुछ दुष्परिणाम भी सामने आयेंगे।
ये सही बात है लेकिन हम उस दुष्परिणाम से लड़ने के लिए एक मास्टर प्लान तैयार कर इसके दुष्परिणाम से बचा जा सक्ता है।
वहीं कुछ पर्यावरणविदों, अर्थशास्त्रियों और राजनैतिक दलों के अनुसार यह एक बहुत ही महंगी और भारी भरकम राशि निवेश करने वाली परियोजना है जिसका असर हमारी अर्थवयवस्था पर
भी पर सकता है।
ये भी सही है परन्तु हमें तो वैसे भी प्रतिवर्ष बाढ़ हो या सुखाड़ इनसे होने वाली क्षति, राहत कार्यों और लोगों को पुनर्स्थापित करने के लिए भी तो भारी भरकम राशि खर्च करना पड़ता ही है।
कोई भी बड़े कार्य के सन्पादण मे समस्याओं का आना स्वाभविक है। अगर हमें किसी समस्या का स्थाई निदान चाहिये होता है तो उस समस्याओं के मूल जड़ों में जाना ही होगा।
वर्तमान समय में सत्ताधारी दल के समक्ष अन्य समस्याओं की चुनौतियां अधिक है, परन्तु नदियों को नदियों से जोड़ने वाली इस बहुप्रतिक्षित और महत्वकांक्षी परियोजना को फिर से अमल में लाने का उम्मीद भी इसी सरकार से है, या इससे भी बेहतर कोई समाधन हो तो उसको ही अमल मे लाए जाने की कोशिशें तेज होनी चाहिए,
और साथ ही साथ हमें और हमारे समाज को प्रकृति के करीब जाना होगा, प्रकृति के दिलों को समझना होगा, जितना प्रेम हम अपने घर के बगीचे से करते हैं उतना ही प्रेम हमे प्रकृति द्वारा उपहार में मिले इस बगीचे को भी करना होगा। हमे अपनी आने वाली पीढ़ी को भी प्राकृति से प्रेम करने का संस्कार देना होगा।
तभी हम अपने आने वाली पीढ़ी को स्वच्छ जल, वायु, और भयमुक्त वातावरण दे सकेंगे।
किसी भी लेख में भूलचूक होना स्वाभाविक है - कृपया लेख को पढ़कर अपने सुझाव और परामर्श अवश्य देवे - यदि कोई त्रुटि रह गयी हो तो क्षमा करे।
बहुत अच्छा लेख है आपका और इन समस्याओ के प्रति ध्यान दिलाने का आपका प्रयास बहुत ही प्रसंसनीय है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका ...सर 🙏
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका ...सर 🙏
Deleteसुझाये गये उपचार विवाद के विषय हो सकते हैं, किन्तु लेख का विषय सार्वभौमिक है। एक और विषय जिसने अब गम्भीरता से आगे बढ़ कर प्रलय का रूप ले लिया है वह है सरकारों की विपदायों के हल के प्रति उदासीनता। हर बार हम प्यास लगने पर ही कुंआ खोदने का प्रयास करते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद..सर ...किन्तु लेख मे ऐसी कोई विवादस्पद बात तो नही है ..अगर आपको लग रहा है तो कृप्या मार्गदर्शीत करें सर....
Deleteधन्यवाद..सर ...किन्तु लेख मे ऐसी कोई विवादस्पद बात तो नही है ..अगर आपको लग रहा है तो कृप्या मार्गदर्शीत करें सर....
Deleteबहुत अच्छा लेख। मुख्य वजह है मानव का प्रकर्ति के साथ खिलवाड़।
ReplyDeleteजी बिल्कुल ...हमे भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी 🙏🙏
ReplyDeleteयदि सभी लोग ईमानदारी से अपना फर्ज निभाए तो भविष्य की गंभीर समस्याओं से बचा जा सकता है
ReplyDeleteजी बिल्कुल ...जब तक हम अपने देश के प्रति, समाज के प्रति, प्राकृतिक संपदाओं के प्रति ईमानदार नहीं होंगे,
Deleteसमस्याएँ विकराल होती जाएंगी। 🙏🙏
जी बिल्कुल ...जब तक हम अपने देश के प्रति, समाज के प्रति, प्राकृतिक संपदाओं के प्रति ईमानदार नहीं होंगे,
Deleteसमस्याएँ विकराल होती जाएंगी। 🙏🙏
Good one
ReplyDeleteKeep it Up
Thnk u very much sir....🙏🙏🙏
DeleteThnk u very much sir....🙏🙏🙏
Deleteएक गम्भीर समस्या पर आंखे खोलने वाला लेख
ReplyDeleteधन्यवाद आपका मित्र 🙏🙏
Deleteधन्यवाद आपका मित्र 🙏🙏
Deleteबहुत खूब लिखा है आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद हैदरी... सर ....🙏🙏🙏
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद हैदरी... सर ....🙏🙏🙏
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